सामान्य परिचय :
अलसी की खेती मुख्यत: बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश में होती
है। अलसी का पौधा 2 से 4 फुट ऊंचा होता है। इसके पत्ते रेखाकार एक से तीन
इंच लंबे होते हैं। फूल मंजरियों में हलके नीले रंग के होते हैं। फल कलश के
समान आकार के होते हैं, जिसमें 10 बीज होते हैं। बीज ललाई लिए चपटे,
अंडाकार, चमकदार होते हैं। बीजों से अलसी का तेल बनता है। अलसी की जड़ सफेद
रंग की, पेंसिल जितनी मोटी और 4 से 10 इंच लंबी होती है।
विभिन्न भाषाओं में नाम :
संस्कृत
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अतसी, नील पुष्पी, क्षुमा, उमा, पिच्छला, अतसी।
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हिंदी
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अलसी, तीसी।
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मराठी
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जवसु।
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गुजराती
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अलशी, अलसी।
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बंगाली
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मर्शिना।
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तेलगू
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बित्तु, अलसि, अतसी।
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अरबी
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कत्तन।
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फारसी
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तुख्में कत्तान, जागिरा।
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अंग्रेजी
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लिनसीड।
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लैटिन
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लिनम् युसिटेटिसिमम्।
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रंग : अलसी का रंग लाल होता है।
स्वाद : इसका स्वाद फीका होता है।
प्रकृति : अलसी ठंड प्रकृति की होती है।
स्वरूप :
अलसी एक
अनाज है जो खेतों में बोया जाता है। इसके फूल नीले और फल हरे रंग के होते
हैं। उन्ही के अंदर यह लाल रंग की चिपटी दाना वाली होती है।
गुण :
अलसी मधुर, तीखी, गुरू (भारी), स्निग्ध (चिकनी), गर्म प्रकृति, पाक में
तीखी, वात नाशक, कफ़-पित्त वर्धक, आंखों के रोग, व्रण शोथ (जख्मों की सूजन)
और वीर्य के दोषों का नाश करती है। अलसी का तेल मधु, वात नाशक, कुछ कसैला,
स्निग्ध, उष्ण, कफ़ और खांसी नाशक, पाक में चरपरा होता है।
हानिकारक :
अलसी का अधिक मात्रा में उपयोग आंखों के लिए हानिकारक होता है। यह अंडकोष,
पाचनतंत्र (पाचन क्रिया) को नुकसान पहुंचाती है और शुक्रनाशक भी कही जाती
है।
alasee alasi alsee alsi tisi teesee
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